कभी-कभी आदमी अपने ही पेशे को कोसने लगता है. कभी-कभी आदमी ये सोचने पर मजबूर हो जाता है कि उसने पूरी ज़िंदगी जिस काम को किया, क्या उसके साथ उसने न्याय किया? आज संजय सिंहा भी हमें एक ऐसी ही कहानी सुनाएंगे जिसकी वजह से वे यह सोचने को मजबूर हो गए कि ये कौन सी पत्रकारिता है जो वह कर रहे हैं? क्या इसीलिए पत्रकार बनने आए थे? जानें क्या है वो कहानी जिसने संजय सिन्हा को ऐसा सोचने पर मजबूर कर दिया?
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